Hintçe

लोग कया कहेंगे कि पिता तो माना हुआ विदवान और बटा मूरख । यह सोचकर वरदराज की आँखों के आगे अँक्षेरा छा गया । उसे अपना भविषय अंधकारमय दिखाई देने लगा । उसने अपने सामान की गठरी बाँधी , गुरूजी के चरण छुए साथियों से गले मिला और भारी मन से विदा हुआ । मारे शरम के वह धरती में गड़ा जा रहा था । उसके पाँव उठते ही नहीं थे । वह उदास अनमना-सा चल रहा था । यों घर वापस जाने का उसका ज़रा भी मन नहीं था । पर और कोई ठौर -ठिकाना भी नहीं था । कहाँ जाए, कया करे, उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था ।

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